गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

सेरीब्रल पाल्सी

सेरीब्रल पाल्सी के कितने नाम ?
इसे अनेक नाम से पुकारते हैं -
अंग्रेजी नाम का संक्षिप्त रूप है । सी.पी. (सेरीब्रल = मस्तिष्क गोलार्ध; पाल्सी = लकवा, फालिज, पक्षाघात, पेरेलिसिस)
हिन्दी में शाब्दिक अर्थ हुआ मस्तिष्क गोलार्ध पक्षाघात
यह बहुत कठिन नाम है । सरल भाषा में कहें तो दिमागी लकवा ।
चूंकि यह रोग प्रायः जन्म के समय से मौजूद रहता है अतः इसे जन्मजात लकवा या शिशु लकवा या बाल लकवा भी कह सकते हैं ।
सेरीब्रल पाल्सी से पीडत बच्चों के शरीर की मांसपेशीयाँ प्रायः अकडी हुई, कडक होती है । हाथ पैर को हिलाने डुलाने में जकडन या प्रतिरोध का अनुभव होता है । ऐसी अवस्था को स्पास्टिक नामक विशेषण से व्यक्त करते हैं । अतः सेरीब्रल पाल्सी से ग्रस्त बच्चे कई बार स्पास्टिक बच्चे भी कहलाते हैं ।

सेरीब्रल पाल्सी क्या है ?
एक दुर्घटना, मस्तिष्क के साथ घटनेवाली एक दुर्घटना ! सेरीब्रल पाल्सी की तुलना, आप एक्सीडेन्ट से कर सकते हैं ।
मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाने के उपरांत शेष बची विकृति का नाम सेरीब्रल पाल्सी है ।
कैंसर या अन्य जीवाणुजनित रोग समय के साथ बढते जाते हैं । किन्तु सेरीब्रल पाल्सी इस प्रकार स्वतः ही बढने वाली समस्या नहीं है ।

सेरीब्रल पाल्सी की परीभाषा -
यह रोग विकसित हो रहे मस्तिष्क में अनेक प्रकार की खराबियों या नुकसान की वजह से होता है । मस्तिष्क कब विकसित हो रहा होता है ? मां के गर्भ में जन्म के समय और जन्म के बाद के आरम्भिक एक दो वर्षों में ।
मस्तिष्क में आने वाली खराबी किस प्रकार की हो सकती है ? इन्फेक्शन, रक्तप्रवाह में रोक, चोट, रक्तस्त्राव, आनुवांशिक, अनेक मामलों में खराबी अज्ञात या अप्रकट रहती है ।
इस रोग में बच्चे का शारीरिक - मोटर (प्रेरक) विकास धीमा या अवरुद्ध या असामान्य हो जाता है । मोटर (प्रेरक) विकास का सम्बन्ध मांसपेशियों की शक्ति, अंग संचालन, सटीकता व संयोजन से है । मोटर (प्रेरक) तंत्र के बूते पर ही शरीर की तमाम गतियां संचालित होती हैं ।

सेरीब्रल पाल्सी रोग के लक्षण व दुष्प्रभाव या तो स्थायी रहते हैं या उम्र के साथ कुछ हद तक ठीक हो सकते हैं । सेरीब्रल पाल्सी बढने वाला या बिगडने वाला रोग नहीं है, जो नुकसान मस्तिष्क में एक बार होना था वह हो चुका अब और ज्यादा नहीं होगा ।
मोटर (प्रेरक तंत्र) के कारण मांसपेशियों व अंगों के संचालन के अलावा अनेक मामलों में मस्तिष्क सम्बन्धी कुछ और खराबियां व दुष्प्रभाव मौजूद रह सकते हैं । जैसे - मन्दबुद्धि, मिर्गी, देखने व सुनने की क्षमता में कमी आदि । इन अतिरिक्त दुष्प्रभावों के मौजूद रहने या न रहने से सेरीब्रल पाल्सी की परिभाषा में कोई असर नहीं पडता ।


प्रमुख कारण -
बहुत से मामलों में कारण अज्ञात होता है । यह रोग अपने आप ही प्रकट होता है । कुछ कारण तो है, परन्तु जांच के बाद भी प्रकट नहीं होता । यदि कारण ज्ञात हो जावे तो मुख्य उदाहरण है ।
अ. समय से पूर्व प्रसव (प्रीमेच्युरिटी) कम वजन या छोटा शिशु ७ वें या ८ वें महिने में पैदा होने वाला बच्चा । (ऐसे बच्चों में मस्तिष्क में रक्तस्त्राव व रक्त अल्पता की समस्या अधिक होती है ।
ब. गर्भावस्था के दौरान शिशु के मस्तिष्क विकास में विकृति या अवरोध, जिनेटिक खराबियाँ, माता के रोग जैसे इन्फेक्शन, बुखार, रक्तचाप, मधुमेह, नशा करना, कुपोषण, चोट ।
स. प्रसव के दौरान गडबडी यह उतना प्रमुख या महत्वपूर्ण कारण नहीं है जितना कि अभी तक आम तौर पर समझा जाता है । लोग अक्सर आरोप लगाते हैं या शंका करते हैं कि जन्म की प्रक्रिया के दौरान स्त्री रोग विशेषज्ञ या दाई द्वारा ठीक से देखभाल न किये जाने से शिशु को नुकसान पहुंचा । परन्तु बाद के वैज्ञानिक आकलनों से यह ज्ञात हुआ कि सेरीब्रल पाल्सी होने का अंदेशा (९०प्रतिशत में) प्रसव के पहले से मौजूद रहता है । प्रसुति की खराबियाँ बहुत कम मामलों में (केवल १० प्रतिशत) सी.पी. का कारण बनती हैं । जन्म के समय ऑक्सीजन की तथा कथित थोडी बहुत कमी अनेक शिशुओं को हो सकती है, सबके सब सेरीब्रल पाल्सी के शिकार नहीं होते । जिन बच्चों का ए.पी.जी.ए.आर. स्कोर कम होता है, उनमें सी.पी. होने की आशंका निश्चय ही अनेक गुना बढ जाती है । अनेक अच्छे भले बच्चे सामान्य प्रसुति के बावजूद सी.पी. से ग्रस्त हो सकते हैं । विकसित देशों में बेहतर प्रसुति सेवाओं के फलस्वरूप शिशु मृत्युदर में कमी आयी है । परन्तु सेरीब्रल पाल्सी की व्यापकता कम नहीं हुई है ।

प्रसव के बाद नवजात शिशु की समस्याओं के कारण सी.पी.
बच्चे का दम घुटना, ऑक्सीजन की कमी, श्वास नली में कोई खाद्य या अखाद्य वस्तु का अटकना ।
दुर्घटनावश जहर का सेवन ।
पानी मे डूबना ।
सिर की गम्भीर चोटें ।
अनेक प्रकार के इन्फेक्शन या संक्रमण रोग जो मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं । जैसे कि मेनिन्जाइटिस, एन्सेफेलाईटिस, (दिमागी बुखार), मस्तिष्क मलेरिया आदि ।


सेरीब्रल पाल्सी से मिलती जुलती अवस्थाएं जो वास्तव में भिन्न हैं -
पोलियो - पोलियो का असर मस्तिष्क पर नहीं वरन् रीढ की हड्डी के अन्दर स्थित स्पाइनल कार्ड पर पडता है, पोलियो जन्मजात नहीं होता, काफी बाद में होता है । ६ माह की उम्र से ५ वर्ष की उम्र तक हो सकता है । पोलियो में हाथ पैर की मांसपेशियों में जकडन, अकडन नहीं होती बल्कि ढीलापन, नरमपन व शिथिलता होती है । न्यूरोलाजिस्ट की हथोडी से जांच करने पर सी.पी. में हाथ-पांव उचकते हैं, झटका आता है जबकि पोलयो में मांसपेशियां निढाल पडी रहती हैं । सेरीब्रल पाल्सी में यदि मस्तिष्क नुकसान ज्यादा हो तो पक्षाघात के साथ -साथ बुद्धि, स्मृति, सोच-समझ वाणी, दृष्टि आदि पर भी असर रह सकता है जबकि पोलियो में ऐसी कोई बात नहीं होती ।

न्यूरो-क्षयकारी बीमारियाँ
तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग किस्म की क्षयकारी बीमारियाँ हो सकती है । मस्तिष्क स्पाईनल कार्ड, नर्वस, मांसपेशियां प्रभावित हो सकते हैं । अनुवांशिक या किन्हीं अज्ञात कारणों से नर्वस सिस्टम के ये अंग स्वतः गलने लगते हैं, क्षय होने लगते हैं, नष्ट होने लगते हैं । समय के साथ रोग बढता जाता है, बच्चे ने जो कुछ सीखा था, हासिल किया था, उसे खोने लगता है । विकास के पायदानों पर उपर चढने के बजाय नीचे उतरने लगता है । इसके विपरीत सेरीब्रल पाल्सी में विकास धीमा परन्तु विपरीत दिशा में नहीं होता । न्यूरो-क्षयकारी या डीजनरेटिव बिमारियाँ तुलनात्मक रूप से कम व्यापक है । इसके प्रमुख उदाहरण हैं ।
मस्तिष्क = न्यूरान संचयकारी रोग
ल्युकोडिस्ट्राफी ः विल्सन रोग ः सेरीब्रल क्षय रोग, (अटेक्सिया, असंतुलन) डिस्टोनिया गतिज रोग, (मूवमेन्ट डिसआर्डर) ः केवल मन्दबुद्धिता, (मेंटल रिटार्डेशन)
स्पाईनल कार्ड (मेरुदण्ड तंत्रिका) अनुवांशिक स्पास्टिक पेराप्लीजिया, स्पाईनल मस्क्युलर एट्रोफी
तंत्रिका/नाडयां/नर्वस ः न्यूरोपेथीः शारको मेरी टुथ रोग
मांस पेशियां ः मायोपेथी ः डूशेन रोग

अन्य परवर्ती रोग - जन्म या शैशव के बाद अनेक प्रकार के रोग नर्वस सिस्टम पर असर डाल कगर सेरीब्रल पाल्सी से मिलती जुलती अवस्थाएं पैदा कर सकती हैं, उदाहरण
ब्रेन ट्यूमर (मस्तिष्क में गांठ), हाईड्रोसिफेलस (मस्तिष्क में पानी भर जाना), दुर्घटनाओं में सिर की चोट (हेड इन्ज्यूरी, दुर्घटनाओं में स्पाईनल कार्ड या नर्वस (तंत्रिकाओं) की चोट

सेरीब्रल पाल्सी का निदान -
डॉक्टर कैसे फैसला करते हैं कि किसी बच्चे को सेरीब्रल पाल्सी है या नहीं ?
बच्चे के माता-पिता से हिस्‍ट्री (इतिवृत्त या इतिहास) सुनकर निष्कर्ष निकाला जाता है । विकास की जानीमानी पायदानों पर बच्चे का सफर कितना पीछे है, या पता लगाना महत्वपूर्ण है । यह जानना भी जरूरी है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि एक उम्र तक बच्चे की बढत अच्छी थी और बाद में पिछडने लगा है, यदि ऐसा है तो सेरीब्रल पाल्सी की संभावना कम होगी क्योंकि सी.पी. का दुष्प्रभाव जन्म से या शुरु के महिनों से रहता है ।

अनेक माता-पिता ठीक से इतिवृत्त या हिस्‍ट्री नहीं बता पाते, शायद कम पढे लिखे होते हैं या सरल और भोले होते हैं, या लापरवाह होते हैं । उन्हें नहीं पता होता है कि आमतौर पर स्वस्थ बच्चा ६ माह में बैठने या १२ माह में चलने और १८ माह में बोलने लगता है। यदि उनसे पूछो कि क्या आफ बच्चे का विकास सारे समय ठीक रहा तो वह बता नहीं पाते, ऐसी स्थिति में डॉक्टर का काम कठिन हो जाता है । क्योंकि सेरीब्रल पाल्सी के निदान का सारा दारोमदार इस हिस्‍ट्री पर ही टिका रहता है ।

बहुत छोटे शिशुओं में बीमारी का सटीक निदान सम्भव नहीं, केवल आशंका व्यक्त कर सकते हैं । प्रतीक्षा करना पडती है, बच्चे की १८ माह की उम्र के पहले बताना सम्भव नहीं होता । अनेक माता-पिताओं के लिये यह अनिश्चितता और प्रतीक्षा, चिन्ता और व्यग्रता से भरी होती है ।

हिस्‍ट्री के बाद चिकित्सक बच्चे के शरीर की जांच करते हैं । बदन को, हाथ पैर को हिला डुला कर देखते हैं, ठोंक बजा कर देखते हैं, मांसपेशियों में टोन (तन्यता) का आकलन करते हैं, गतियों की सुघडता और संयोजन पर गौर करते हैं, असामान्य मुद्रा (पोश्चर) और प्रतिवर्ती क्रियाओं (रिफ्लेक्स एक्शन) पर ध्यान देते हैं । औपचारिक परीक्षण के साथ-साथ अनौपचारिक अवलोकन भी उपयोगी रहता है । बच्चे को सामान्य सहज अवस्था में खेलते, खाते घूमते देखना चाहिये ।
एक बार का परीक्षण पर्याप्त नहीं होता, समय के अन्तराल पर परीक्षण दोहराना पडता है । स्थिति सुधर रही है बिगड रही है या स्थिर है इसका फैसला जरूरी है । सी.पी. में हालत प्रायः स्थिर रहती है, मामूली धीमा सुधार होता है, यदि तेजी से सुधार व बिगडाव हो रहा है तो सी.पी. के बजाय अन्य रोग होगा ।

सेरीब्रल पाल्सी के निदान में प्रयोगशाला परीक्षण की क्या भूमिका ?
ऐसी कोई प्रयोगशाला परीक्षण (एक्स-रे, सी.टी.स्केन, खून पेशाब की जांच) नहीं है जिसके आधार पर निश्चय से कहा जा सके कि किसी बच्चे को सेरीब्रल पाल्सी है या नहीं । यह फैसला तो शुद्ध क्लीनिकल आधार पर, इतिवृत्त (हिस्‍ट्री) के आधार पर और शारीरिक जांच द्वारा लिया जाता है । फिर भी परीक्षणों की कुछ सीमित उपयोगिता है । सी.पी. से मिलती जुलती अन्य अवस्थाओं से भेद करने में मदद मिलती है ।

सी.टी. स्कैन तथा चुम्बकीय एम.आर.आई. स्कैन की मदद की रचना के विस्तृत चित्र प्राप्त होते हैं । सेरीब्रल पाल्सी में ये चित्र सामान्य हो सकते हैं, यदि रोग की तीव्रता कम हो । अनेक प्रकार की खराबियाँ भी दिखायी पड सकती हैं, जो बीमारी के कारण, प्रकार व तीव्रता के बारे में जानकारी बढा सकती हैं, फिर भी ऐसा विरले ही होता है कि उक्त जानकारी के आधार पर बच्चे के उपचार में कोई खास फर्क पडे ।

बहुत से माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे की पूरी, सम्पूर्ण, विस्तृत जांच हो जावे, चाहे पैसे कितने भी लगें । उन्हें हम समझाते हैं कि बीमारी का निदान तो बगैर जांच के ही हो जाता है और इलाज भी प्रायः एक जैसा ही रहता है ।
खून की कुछ विशेष जांचों द्वारा रासायनिक व अनुवांशिक बीमारी का निदान करने में मदद मिलती है ।

सेरीब्रल पाल्सी के कितने प्रकार - कितने रूप
अ. शरीर का कौन सा और कितना भाग प्रभावित हुआ है ? इस आधार पर निम्न प्रकार पहचाने जाते हैं -
हेमीप्लीजिया (अर्धांग लकवा)
डायप्लीजिया - दोनों पैरों का लकवा (अधिरंग लकवा)
क्वाड्रीप्लीजिया - चारों हाथ पैरों का लकवा (चतुरंग लकवा)
मोनोप्लीजिया - एक हाथ या एक पैर का लकवा
शरीर के अंग की मांस पेशियों में टो (तन्यता) के आधार पर सी.पी. के निम्न रूपों में वर्गीकृत किया जाता है -
स्पास्टिक ः अकडन/जकडन/कडक । यही रूप सबसे अधिक व्यापक है ।
हायपोटानिक ः शिथिल, ढीला, कम उम्र के छोटे शिशुओं में सी.पी. की आरम्भिक अवस्थाओं में ऐसा कभी-कभी हो सकता है ।
डिस्टोनिक - रिजिड ः असामान्य विकृत मुद्राएं (पोश्चर) व असामान्य प्रेरक गतियाँ ।
अटेक्सिक - असंयोजन, असंतुलन, अनगढता, बारीक काम सफाई से न कर पाना, नशे जैसी झूमती चाल होना ।
स. बीमारी की तीव्रता के आधार पर सेरीब्रल पाल्सी - मद्दिम या मंझली या तीव्र हो सकती है ।
सेरीब्रल पल्सी में मोटर सिस्टम (प्रेरक शक्ति व गति) की खराबी के अलावा और कौन सी अतिरिक्‍त कमियाँ हो सकती है ?
ये अतिरिक्‍त समस्याएं उस मूल मस्तिष्क रोग के कारण हो सकती हैं जो खुद सेरीब्रल पाल्सी का भी कारण है । इसके अलावा अन्य कारणों से अन्य समस्याएं भी हो सकती है । इनका होना सदैव जरूरी नहीं है और इनके होने या न होने से सेरीब्रल पाल्सी की परिभाषा व निदान पर कोई असर नहीं पडता है ।

मन्दबुद्धिता (मेन्टल रिटार्डेशन) - इसकी व्यापकता अधिक है । लेकिन सेरीब्रल पाल्सी ग्रस्त कुछ बच्चे मेधावी हो सकते हैं । कमजोर बच्चे के स्कूल में दाखिला दिलाने से इन मेधावी बच्चों को मुश्किल होती है ।
मिर्गी (एपिलेप्सी)
सीखने, समझने की विशिष्ट सीमित दिक्कतें (स्पेशल लर्निंग डिफेक्ट्स) ः पूरी तरह से मंदबुद्धिता नहीं परन्तु बुद्धि क्षमता का कोई एक खास पहलू प्रभावित हो सकता है । जैसे = पढना, लिखना, गणित, संगीत, चित्र बनाना, हाथों का हुनर आदि ।
चित्त चंचलता - अति सक्रियता (अटेंशन डेफिसिट डिसओर्डर) ः एकाग्र चित्त न हो पाना, सदा कुछ न कुछ करते रहना, कभी यहां कभी वहां, अनेक मामलों में तोड फोड, मारपीट, काटना आदि ।
भोजन निगलने में दिक्कत ः चबाने और निगलने में देरी, पेट का भोजन उलट कर भोजन नली या मुंह में आ जाना ।
लार टपकते रहना ः इसका नियंत्रण कठिन है । मुंह में स्थित लार ग्रंथि की नलिका का विस्थापन आपरेशन का सकते हैं । चमडी पर स्कोपोलामीन नामक औषधी का पट्टा चिपकाने से कुछ फायदा होता है ।
दृष्टि दोष
श्रवण दोष
कुल्हे का जोड व अन्य जोडों तथा हड्डियों का खिसकना या विस्थापित होना ।
मूत्र मार्ग में रुकवाट, इन्फेक्शन
नींद की समस्याएं
गति न होने से हड्डियों में केल्शियम की कमी ।

सेरीब्रल पाल्सी के उपचार में औषधियों की क्या भूमिका है ?
सेरीब्रल पाल्सी के उपचार में औषधियों की भूमिका सीमित है, ऐसी कोई दवाई, टॉनिक या इन्जेक्शन नहीं है जो इस रोग को ठीक कर दे । मस्तिष्क में जो नुकसान हुआ है उसे मिटाना सम्भव नहीं ।
दुर्भाग्य से अनेक माता-पिता किसी ताकत की दवाई की तलाश में भटकते रहते हैं । वे सपना देखते हैं किसी रामबाण औषधी का । चमत्कार की कल्पना इन्सान की मनोवैज्ञानिक कमजोरी है । दुःख की बात है कि कुछ डाक्टर भी उपरोत्त* कटु सत्य बताने में संकोच करते हैं । मरीज के दबाव में उनके संतोष के लिये कोई दवाई या कोई नुस्खा लिख देते हैं । इससे मरीज को लाभ नहीं होता । अनावश्यक पैसा खर्च होता है । कभी दुष्प्रभाव हो सकते हैं ।
फिर भी औषधियों का थोडा बहुत उपयोग है, सब बच्चों में नहीं, केवल थोडी सी चुनी हुई परिस्थितियों में, पूरे मूल रोग के लिये नहीं वरन् रोग के किन्हीं विशिष्ट पहलूओं के लिये ।

यदि सी.पी. ग्रस्त बालक को मिर्गी के दौरे आते हों तो औषधियाँ लम्बे तक देना होती हैं । दौरे रुक जाते हैं । कम हो जाते हैं और कुछ बच्चों में बौद्धिक विकास थोडा सुधर जाता है । कभी ऐसा भी देखा गया है कि मिर्गी के दौरे तो नहीं आये परन्तु ई.ई.जी. नामक जांच में मिर्गी नुमा खराबी पाई गई, इन बच्चों मे मिर्गी विरोधी औषधी से बुद्धि एकाग्रता में शायद लाभ हो परन्तु यह विवास्पद है ।

सेरीब्रल पाल्सी में मांसपेशियों की अकडन/जकडन/कडकपन को कम करने के लिये एन्टी स्पास्टिसिटी औषधियाँ दी जा सकती हैं । इसका असर सीमित है, औषधियाँ महंगी है, दुष्प्रभाव होते हैं, सुस्ती व उनींदपन आ जाता है, फायदा तभी तक रहता है जब तक दवाईयाँ देते रहें।
विटामिन, आयरन, केल्शियम, प्रोटीन आदि पूरक व कुछ बच्चों को दिये जाते हैं, यदि क्लीनिकल आधार पर शक हो कि उन्हें कुपोषण व कमी हो सकती है । कुछ बच्चों में सेरीब्रल पाल्सी की वजह से असामान्य हरकतें, गतियाँ व टेढी-मेढी मुद्राएं (पोश्चर) होती रहती हैं । इसे गतिज दोष (मूवमेंट डिसआर्डर) कहते हैं जो बच्चे को कार्यकलाप में बेहद खलल डाल सकता है । एन्टीकोलिनर्जिक प्रजाति की दवाईयों से कुछ बच्चों में अच्छा लाभ होता है ।
अनेक औषधी निर्माता तथा वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के प्रेक्टिशनर्स सफल उपचार का दावा और प्रचार करते हैं । वैज्ञानिक आधार पर उनके दावों की पुष्टि नहीं हुई है । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान (एलोपेथी) में किसी भी उपचार को उस समय तक तर्कसंगत व अनुशंसनीय नहीं माना जाता जब तक कि उसे मरीजों के बडे समूह में व्यवस्थित और तुलनात्मक रूप से परखा न गया हो । इक्का दुक्का व्यक्तिगत अनुभवों और सुनी बातों के आधार पर निष्कर्ष नहीं निकालते ।

सेरीब्रल पाल्सी में क्या न करें
डब्ल्यू के आकर में नहीं बैठें ।
मेंढक/खरगोश की तरह नहीं कूदें ।
आगे झुककर नहीं बैठें ।
ऐसे जोडों पर भार न डालें, जिन पर काम करने वाली पेशियों में ताकत कम है ।
कसरत के समय बच्चे को डाँटें या डराएं नहीं ।
कसरत के समय पेशियों को दर्दमय ढंग से न खींचे ।
असामान्य प्रतिरूप से कोई भी क्रिया न करें ।

सेरीब्रल पाल्सी में क्या करें ।
सक्रिय व निष्क्रीय दोनों व्यायाम करें ।
पालथी लगाकर सीधा बैठें ।
पांवों को सीधा फैलाकर उन्हें एक दूसरे से जितना दूर रख सकें, रखें ।
बच्चे के शरीर के कुद हिस्से गुदगुदाने पर वहां कि मांसपेशियों के सिकुडने से उनमें ताकत लाना संभव है ।
काम और आराम के समय जांघों और घुटनों को तकिये आदि की मदद से दूर रखें ।
टीवी, रेडियो, वीडियो गेम्स की मदद से व्यायाम को मनोरंजक कार्य बनाएं ।
बच्चे का व्यायाम २४ घंटे चलता है । इसलिये सभी परिजन उसके हर काम को निर्देशित करें ।

सेरीब्रल पाल्सी में सुधार की संभावनाओं का पूर्वानुमान (प्रोग्नोसिस) कैसे करें ?
मेरा बच्चा कब ठीक होगा ? कितना ठीक होगा ? होगा कि भी नहीं ? क्या वह चल पायेगा ? बोल पायेगा ? पढ लिख पायेगा ? अपनी स्वयं की देखभाल कर पायेगा ? माता-पिता के मन में बहुत से प्रश्न उठते रहते हैं । काश कि डाक्टर्स के पास भविष्य जानने की विद्या होती । ६ माह से १२ माह की उम्र के पहले किसी भी प्रकार का पूर्वानुमान लगाने का प्रयत्न करना व्यर्थ है । यदि जन्म के समय या आरम्भिक महीनों में यह ज्ञात हो जाये कि मस्तिष्क में नुकसान पहुंचा है तो माता-पिता को किसी बुरे परिणाम की आशंका से आगाह करना या नहीं ? यह कठिन फैसला है । पूर्वानुमान गलत हो सकते हैं । अर्धान्ग लकवा (हेमीप्लीजिया) में सुधार की सम्भावना अधिक होती है । केवल एक आधा भाग (दायां या बायां) प्रभावित रहता है । दूसरा अच्छा होता है । अधिरंग लकवा (दोनों पैर) ग्रस्त बच्चे देर से चलते हैं या मुश्किल से चल पाते हैं परन्तु दोनों हाथ तथा वाणी बुद्धि कम प्रभावित रहने से आगे चल कर कुछ हद तक आत्मनिर्भर हो पाते है । चतुरंग घात (क्वाड*ीप्लीजिया, चारों हाथ पैर) निश्चय ही सबसे खराब अवस्था है । ये बच्चे शायद सदैव पराश्रित रहेंगे । सी.पी. के साथ-साथ कभी-कभी मौजूद रहनेवाली अन्य समस्याओं (एपिलेप्सी आदि) पर भी पूर्वानुमान निर्भर करता है ।
यदि बच्चे ने सिर उठाना व गर्दन संभापना नहीं सीखा है तो उसके बैठ पाने की सम्भावना दूर है । जो उसने अर्जित कर लिया है उतना तो बना रहेगा, उसे खोना नहीं चाहिये, यदि खोता है तो बीमारी सेरीब्रल पाल्सी नहीं वरन् कुछ और हो सकती है ।

यदि बच्चे ने चार वर्ष की उम्र तक अपने आप बिना सहारे बैठना नहीं सीखा और आठ वर्ष की उम्र तक चलना नहीं सीखा तो आगे सुधार की उम्मीद कम है ।
बोलने की क्षमता और बौद्धिक क्षमता का आकलन और पूर्वानुमान लगाना भी कठिन है । दो वर्ष की उम्र के बाद ही थोडा बहुत अंदाजा लगाया जा सकता है । हाथ, पैरों व चेहरे की मांसपेशियों की प्रेरक क्रियाओं (मोटर एक्शन) में बाधा रहने से बुद्धि, स्मृति, भाषा, ज्ञान, समझ आदि गुणों की माप करना कठिन होता है । अनुभवी और निष्णात क्लीनिकल सायकोपाजिस्ट (मनोवैज्ञानिक) की सेवाओं की जरूरत पडती है । वे विशिष्ट परीक्षण व जांच द्वारा विकास सूचकांक (डेवलपमेंटल क्वोशन्ट डी.क्यू.) तथा बुद्धि सूचकांक (इन्टेलिजेन्स कोशन्ट, आई.क्यू.) निकालते हैं ।
आगे चलकर बौद्धिक विकास पर ही निर्भर होगा कि बच्चा किस हद तक बेहतर जीवन जी पायेगा । शारीरिक विकास की तुलना में बौद्धिक विकास का पूर्वानुमान से अधिक गहरा संबंध है । पहियेवाली कुर्सी (व्हील चेयर) में बैठा किशोर यदि बुद्धि से सामान्य हो तो जिन्दगी में बहुत कुछ कर सकता है ।

जिन बच्चों में मस्तिष्क रोग की भीषण तीव्रता के बारे में शुरु से ज्ञात रहता है। उनमें यदि आगे चलकर कोई भला परिणाम न मिले (जिसकी आशंका पहले से थी) तो यह सोचने में आता है कि क्यों व्यर्थ ही इतना उपचार किया। इतना समय,धन, ऊर्जा खर्च करी, क्यों पहले से इलाज का मना न कर दिया । चिकित्सक के लिये और परिजनों के लिये भी यह पशोपेश और असमंजस की स्थिति होती है । चूंकि पूर्वानुमान लगने का विज्ञान सटीक नहीं है इसलिये चिकित्सक और जनक प्रायः आशावादिता की क्षीण सी किरण के सहारे प्रयत्न करते जाते हैं । शारीरिक परीक्षण, प्रयोगशाला जांच तथा अनेक महीनों के अवलोकन और अनुगमन (फॉलोअप) से यदि यह पक्का समझ में आ जावे कि अब और कुछ लाभ नहीं है तो निश्चय ही वह स्थिति आ जाती है जब अनावश्यक सक्रिय इलाज बन्द कर दिया जाना चाहिये ।
इन तमाम परिस्थितियों में आशावाद और यथार्थवाद का एक सही सन्तुलन सदैव बनाए रखना चाहिये । बच्चे के मातापिता के साथ तफसीस से बातचीत के दौरान वर्तमान व भविष्य की सामर्थ्य के बारे में चर्चा करना चाहिये ।

सेरीब्रल पाल्सी के उपचार में फिजियोथेरापी की भूमिका क्या है ?
फिजियोथेरापी का व्यायाम चिकित्सा में अनेक गतिविधियाँ शामिल हैं । जहां मरीज में शत्ति* न हो वहां परिजनों व थेरापिस्ट द्वारा गति कराना । जहां अंगों में कुछ शत्ति* हो वहां मरीज को प्रोत्साहित करना, सिखाना कि वह उन मांसपेशियों को अभ्यास द्वारा सशक्त बनाएं । गति या मुवमेंट के गलत ढंग को सुधारना, मांस पेशियों में अकडन आने से रोकना और यदि आ गई हो तो उसे कम करने के उपाय करना, जोडों की अकडन के प्रति भी इसी उद्देश्य से काम करना । बाद की उम्र में जितनी भी दक्षता, शक्ति, सुगढता विकसित हो पाई हो, उसी के बूते पर दैनिक कार्यों को निष्पादित करने की कला, तरकीबें, उपाय और तरीके सिखाना, इन कामों में आर्थोटिक उपकरणों की मदद का विज्ञान सम्मत निर्णय लेना और उनके बेहतर उपयोग का प्रशिक्षण देना ।

इन तमाम उपायों से लाभ होता होगा, हालांकि वैज्ञानिक शोध की कसौटियों पर सबूत जुटाना, मुश्किल रहा है । फिर भी सकारात्मक सोच बना रहता है । कुछ करते रहने के अहसास से सार्थकता का बोध रहता है फिजियोथेरापी जल्दी से जल्दी आरम्भ कर देना चाहिये । बच्चे के बडे होने की प्रतीक्षा न करें । उम्र के साथ और सुधार के आधार पर व्यायाम चिकित्सा का स्वरूप बदलता है । फिजियोथेरापिस्ट ही वह विशेषज्ञ है जो बच्चे व माता-पिता के साथ सबसे अधिक समय बिताता है । उसकी कही बातों का बहुत महत्व रहता है । दैनिक जीवन हेतु छोटी-छोटी सामान्य सहज बुद्धि वाली सलाहें कभी कभी परिजनों के लिये बहुत काम की सिद्ध होती हैं । उदाहरण के लिये बच्चे को जमीन या बिस्तर पर लुढके पडे रहने देने के बजाय विशेष कुर्सी पर सहारा देकर बैठाये रहने की सलाह ताकि सिर व गर्दन सम्हले रहे तथा हाथों की मुद्रा (पोश्चर) सही रहे या फिर माता-पिता को यह सिखाना कि बच्चे को कैसे उठायें, नहलायें, धुलायें, भोजन करायें, कपडे पहनायें । व्यायाम चिकित्सा का हुनर इस बात में है कि वह परिजनों में आशा जाग्रत रखे । उन्हें प्रोत्साहित करे और साथ ही उपचार के यथार्थवादी लक्ष्यों से न भटके ।

वे बच्चे जिनमें सी.पी. की तीव्रता भीषणतम है और जिनमें बुद्धि का विकास अवरुद्ध है, उनमें शायद फिजियोथेरापी से कोई लाभ नहीं । दूसरी ओर वे बच्चे जिनमें सी.पी. की तीव्रता न्यूनतम है शायद अपने आप बढती उम्र के साथ ठीक होते जायेंगे और व्यायाम चिकित्सा की आवश्यकता न पडे ।

फिजियोथेरापी में बोरीयत नहीं आने देना चाहिये । बच्चा थक न जाए, बीच में आराम देवें, बहुत ज्यादा दर्द न होने दें, मनोरंजक तरीके से रूचि बनाए रखें, डर का वातावरण न निर्मित करें, बच्चे के मन में चाह और प्रतीक्षा होनी चाहिये कि वह कब अगली बार व्यायाम कराने वाले अंकल के पास जायेगा, न कि भय, चिढ या वितृष्णा । खेल-खेल में और शौक के माध्यम से फिजियोथेरापी जारी रखी जानी चाहिये ।

शल्य चिकित्सा की भूमिका
- बहुत थोडे से सी.पी. मरीजों में (लगभग १५ प्रतिशत) आपरेशन से कुछ फायदा हो सकता है । किसमें होगा और किसमें नहीं इसकी सटीक कसौटियां है । यदि उसके आधार पर सही चयन किया जावे तो ही परिणाम अच्छे मिलते हैं । हड्डी रोग विशेषज्ञ द्वारा किये जाने वाले कुछ उपयोगी आपरेशन हैं -
एडी के समीप एकिलस टेण्डन को लम्बा करना ।
जांघों का आपस में चिपकना ठीक करने के लिये - कुल्हे पर एडक्टर्स मांसपेशियों की सक्रियता को काट कर कम करना ।
घुटनों के पीछे मुड कर जकडने (फ्लेक्शन) की प्रवृत्ति व विकृत्ति को ठीक करना ।
कलाई के जोड को जाम कर देना ।
मांसपेशियों के टेन्डन (कण्डरा) को विस्थापित करना ताकि कमजोर मांसपेशियों की जगह सशक्‍त मांसपेशियों की क्रिया का लाभ लिया जा सके ।
शल्य उपचार प्रायः पांच वर्ष की उम्र के आसपास उचित होता है । आपरेशन की भूमिका सीमित है उपचार से बाकी पहलू खास कर फिजियोथेरापी अधिक महत्वपूर्ण है ।
न्यूरोसर्जन द्वारा किये जाने वाले राईजोटामी ऑपरेशन कुछ बच्चों में बहुत लाभकारी हैं । वे मरीज जिनके हाथ, मुंह, वाणी, बुद्धि अच्छे हैं, पैरों में थोडी शक्ति मौजूद है, परन्तु जकडन स्पास्टिसिटी की वजह से चल नहीं पाते उनमें राईजोटामी उपयोगी है ।
कुछ नये उपचार भी निकले हैं जो फिलहाल महंगे हैं । जकडन या स्पास्टिसिटी कम करने के लिये रीढ की हड्डी के अंदर स्पाईनल कार्ड (मेरुतंत्रिका) के समीप बेक्लोफेन नामक औषधी की सतत बूंद दर बूंद प्रदाय बनाये रखने के लिये एक थैली व पम्प स्थापित कर दिया जाता है ।
बॉट्यूलिनियम नामक दवा के इन्जेक्शन मांसपेशियों में अनेक बिन्दुओं पर लगाने से जकडन ३-४ माह के लिये ठीक हो जाती है, बाद में पुनः इन्जेक्शन लगाये जा सकते हैं ।

सेरीब्रल पाल्सी किसका दोष ? वास्तव में किसी का नहीं
यह मत कहिये -
सेरीब्रल पाल्सी से ग्रस्त बच्चा अभिशाप है
हम अभागे माता-पिता हैं
ईश्वर ने हमारे साथ अन्याय किया
अगर लोगों को मालूम पडा तो क्या होगा ?

याद रखिये
ऐसे बच्चे का जन्म, महज एक दुर्घटना है
इसके लिये कोई भी जिम्मेदार नहीं है
विकसित देखों में भी ऐसे विशेष बच्चे जन्म लेते हैं ।
दरअसल - यह बच्चा ईश्वर का ही उपहार है और आप ही वे विशिष्ट माता-पिता हैं, जिन्हें ईश्वर ने इस खास बच्चे की देखरेश के लिये चुना है

समस्या का आकार
भारत में करीब पच्चीस लाख सेरीब्रल पाल्सी बच्चे हैं
अमेरिका में यह संख्या केवल सात लाख के करीब हैं
भारत में प्रति हजार बच्चों में से तीन बच्चे सेरीब्रल पाल्सी से ग्रस्त हैं ।
बहुत से काम करने को हैं ।

कठिनाईयाँ
आवश्यकता है १० हजार पुनर्वास केंद्रों की, लेकिन फिलहाल बहुत थोडे से केंद्र हैं ।
फिजियोथेरापी, आक्यूपेशन थेरेपी और स्पीच थेरेपी के प्रशिक्षित विशेषज्ञ कम है ।
इस समस्या के बारे में लोगों की जानकारी कम हैं ।
जरुरत है कि सेरीब्रल पाल्सी के मुकाबले के लिये सभी मजबूती से संगठित हों

क्या सेरीब्रल पाल्सी खानदानी बीमारी है ?
नहीं । ९० प्रतिशत से अधिक मामलों में परिवार के किसी भी अन्य सदस्य में सी.पी. का मामला देखने में नहीं आता । यदि एक बच्चे को सी.पी. है तो अगले को होने की आशंका न के बराबर है, फिर भी इस सम्बन्ध में आपने चिकित्सक से सलाह लेना चाहिये ।

शिक्षा, रोजगार और पुनर्वास के क्षेत्र में किया जा सकता है ?
बहुत कुछ किया जा सकता है । जरूरत है लगन, सकारात्मक सोच, जिजीविषा, मेहनत, आत्मविश्वास, मार्गदर्शन की, विशेष अध्यापकों की, जो इन बच्चों की जरूरतों को समझते हों और पाठ्यक्रम व अध्यापन को तद्नुरूप ढाल सकें । आश्रित कर्मशाला (शेल्टर्ड वर्कशाप) में रोजगार मूलक प्रशिक्षण व बाद में रोजगार दिया जाता है ।

सामाजिक संगठनों की क्या भूमिका है ?
इण्डियन फेमिली ऑफ सेरीब्रल पाल्सी एक सार्थक पहल है । इस अभियान को प्रत्येक जिले तक ले जाने की जरूरत है । लोगों को अपनी बीमारी के आधार पर संगठन बनाना चाहिये । नेतृत्व भी उन्हीं में से उभर कर आना चाहिये । संगठन में शक्ति है, सहारा है, संघर्ष है । बांटने से दर्द घटता है । सम्भावनाओं के नये क्षितिज खुलते हैं ।