सतीशचंद्र शुक्ला, ४५ वर्षीय पुरुष एक ट्रान्सपोर्ट कम्पनी में प्रमुख क्लर्क के रूपम ें १० वर्ष से कार्यरत थे । र्दिंन लम्बा होता। घन्टों काम चलता। खूब र्लिंखना पड़ता। ढेर सारे आयटम। ढेर सारी कम्पर्निंयाँ। माल आने वाला, माल जाने वाला। सामान की बुकिंग, र्बिंल्टी बनाना, रसीद भरना। काम में कुशल थे। मार्लिंक खुश थे।
र्फिंर कुछ होने लगा। धीरे-धीरे । शुरु में मालूम न पड़ा। समझ में नहीं आया। दायें हाथ से र्लिंखते थे। उस कन्धे व बाँह में दर्द व भारीपन लगने लगा। कभी कम-कभी ज्यादा। र्लिंखने के बाद अर्धिंक। र्लिंखावट र्बिंगड़ने लगी। र्लिंखने की चाल धीमी होने लगी। कलम पर ऊंगर्लिंयों की पकड़ अनावश्यक रूप से सख्त और बलशाली होने लगी। जोर से पेन पकड़ना पड़ता। अग्रभुजा की माँसपेर्शिंयों में तनाव महसूस होता। तर्जनी व मध्यमा ऊंगली र्लिंखते-र्लिंखते टेढ़ी होने लगती, ऊपर उठने लगती। अक्षर टेढ़े-मेढ़े होने लगे। थकान महसूस होती। काम से डर लगने लगा। समय से पूरा न हो पाता। सहकर्मिर्ंयों ने पूछा - शर्माजी आपकी मोर्तिंयों जैसी हेन्डराईटिंग को क्या हो गया है ? यह सारा पर्रिवर्तन दो तीन माह में बढ़ता गया। छुट्टी के र्दिंन कोई तकलीफ नहीं । र्लिंखने के अलावा उस हाथ या भुजा से अन्य काम करने में कोई तकलीफ नहीं थी- भोजन करना, नहाना, दाढ़ी बनाना, बागवानी करना- सब सामान्य था।
पार्रिवार्रिक र्चिंर्किंत्सक ने सोचा र्किं सर्वाइकल स्पान्डिलोर्सिंस होगी। गर्दन की रीढ़ की हर्ड्डिंयों के मध्य स्थित जोड़ों का गर्ठिंया और वहाँ से गुजरने वाली नार्ड़िंयों (नर्वस) पर दबाव। गर्दन के एक्स-रे में कुछ खराबी पायी भी गई । तर्किंया लगाना बन्द र्किंया। गर्दन की कालर (पट्टा) पहना। दर्द र्निंवारक औषर्धिंयों का सेवन र्किंया। कोई लाभ न हुआ। काम र्बिंगड़ने से मार्लिंक नाराज रहने लगे।
पार्रिवार्रिक र्चिंर्किंत्सक की सलाह पर न्यूरालार्जिंस्ट को र्दिंखाया। नर्वस र्सिंस्टम (तंर्त्रिंका तंत्र) की शारीर्रिक जाँच में कोई खराबी नहीं थी। दायें हाथ व भुजा की मांसपेर्शिंयों की संरचना, आकार, तन्यता, प्रत्यास्थता, शर्क्तिं व सुघड़ता सामान्य थे। उक्त अंग की संवेदना (स्पर्श, दर्द आर्दिं की अनुभूर्तिं) तथा र्रिफ्लेक्सेस (प्रर्तिंवर्ती र्क्रिंयाऐं) भी अच्छे थे।
तब न्यूरोर्फिंर्जिंर्शिंयन ने सतीशचन्द्र को एक कोरे कागज पर कुछ र्लिंखने को कहा- अनुभवी कानों से सुन कर जो सोचा था, पारखी आँखों ने देख कर र्निंदान पक्का र्किंया। अच्छी भली स्वस्थ मांसपेर्शिंयाँ न जाने क्यों र्सिंर्फ इस एक कार्य - र्लिंखनेङ्ख - को अंजाम देने में असमर्थ थीं। हाथ टेढ़ा हुआ, मुड़ गया, मांसपेर्शिंयाँ तन गयीं, ऊंगर्लिंयाँ उठने लगी और काँपने लगी। घोर प्रयत्न के बाद कछुआ चाल से थोड़े से टेड़े मेड़े अक्षर र्लिंखे गये।
डाक्टर ने बीमारी का नाम बताया राईटर्स क्रैम्पङ्ख।
सतीश- क्या यह सर्वाइकल स्पार्न्डिंलोर्सिंस के कारण है ?
डाक्टर - नहीं
सतीश - लेर्किंन एक्स-रे में तो आया है?
डाक्टर - एक्स-रे में बहुत लोगों को आता है। खासकर चालीस वर्ष की उम्र के बाद। अर्धिंकांश में उसकी वजह से कोई तकलीफ नहीं होती।
सतीश - क्या यह टेंशन से है ?
डाक्टर - टेंशन के कारण यह रोग पैदा नहीं हुआ। यह अपने आप होता है। र्जिंन्हें तनाव नहीं होता उन्हें भी हो सकता है। अनेक व्यर्क्तिंयों को आप से अर्धिंक तनाव होगा पर उन्हें नहीं हुआ।
सतीश - क्या यह लकवा है ?
डाक्टर - यह लकवा नहीं है। तुम्हाने हाथ व भुजा की शर्क्तिं समान्य है।
सतीश - यह कैसी बीमारी है ? क्यों हुई ?
डाक्टर - हम नहीं जानते । इसका कारण अज्ञात है। यह एक प्रकार का मूवमेंट र्डिंसआर्डरङ्ख है। गर्तिंज व्यार्धिंङ्ख। गर्तिं या चलन में गड़बड़ी। इसका सम्बन्ध मस्तिष्क से है। र्दिंमाग की गहराई में स्थित कुछ र्हिंस्से होते हैं जो शरीर के अंगों की गर्तिं को संचार्लिंत करते हैं। उनमें अपने आप कुछ खराबी आती है र्जिंससे अच्छी भली मांसपेर्शिंयाँ सामान्य शर्क्तिं और संवेदना के बावजूद अनेक प्रकार के या र्किंसी एक प्रकार के काम को अंजाम नहीं दे पाती।
आपके मामले में मस्तिष्क का वह र्हिंस्सा बेसल गेंगर्लिंया या एक्स्ट्रार्पिंरार्मिंडल र्सिंस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा- लेर्किंन केवल एक गर्तिंर्विंर्धिं के सन्दर्भ में -र्लिंखने के र्लिंये
हार्डवेयर ठीक-ठाक है। साफ्टवेयर करप्ट हो गया है। प्रत्येक काम को संचार्लिंत करने के र्लिंये हमारे र्दिंमाग के उक्त र्हिंस्सों में बहुत प्रकार के मोटर प्रोग्राम बने रहते हैं। उनमें से एक फाईल, लेखन वाली - खराब हो गई है।
सतीश - ऐसा क्यों हुआ ?
डाक्टर - हमें नहीं मालूम।
सतीश - तो जांच कराके पता क्यों नहीं कर लेते। र्दिंमाग का एम.आर.आई. करवा दीर्जिंये।
डाक्टर - वह हम करवा देंगे परन्तु प्रायः उसमें कोई खराबी न.जर नहीं आती। र्रिपोर्ट में र्लिंखा आयेगा - सामान्य, अच्छा एम.आर.आई.
सतीश - बीमारी है पर खराबी क्यों नहीं ?
डाक्टर - खराबी सूक्ष्म है, महीन है, बारीक है। न.जर नहीं आती। पर है जरूर। कोर्शिंकाओं के स्तर पर, न्यूरान के अन्दरूनी पर्रिपथ (सर्किर्ंट) के स्तर पर, उनमें अन्तर्निर्ंर्हिंत रसायनों (ट्रान्सर्मिंटर्स) के स्तर पर
सतीश - राईटर्स क्रैम्प का इलाज क्या है?
डाक्टर - इसका इलाज संतोषजनक नहीं है। कुछ उपाय हैं र्जिंनसे कुछ मरीजों में आंर्शिंक सफलता र्मिंलती है। यह एक दीर्घकार्लिंक बीमारी है। क्रोर्निंक र्डिंसी.ज है । बरसों चलती है। कभी-कभी अपने आप कुछ कम हो जाती है। र्लिंखने में थोड़े र्दिंनों र्किं छुट्टी र्मिंल जाये, या काम का दबाव कम हो तो रोग की तीव्रता कम महसूस होती है। मानर्सिंक अवस्था या मूड जैसे र्किं तनाव, व्यग्रता, र्चिंड़र्चिंड़ापन, उदासी र्निंराशा आर्दिं का भी रोग के लक्षणों पर असर पड़ता है। इन वजहों से कई बार यह आकलन करना मुश्किल होता है र्किं यदा-कदा नजर आने वाला अस्थायी-आंर्शिंक फायदा स्वतः हुआ है या उसका श्रेय र्किंसी डाक्टर या औषर्धिं को देवें।
मरी.ज - दवाईयों के र्बिंना क्या इलाज सम्भव है ? र्फिंर्जिंयोथेरापी, व्यायाम, योग, एक्यूपंचर, खान-पान आर्दिं का क्या असर हो सकता है ?
डाक्टर - दूसरे हाथ से (जैसे र्किं बायाँ) र्लिंखने का अभ्यास करना चर्हिये। तकलीफ होगी, बोर्रियत होगी। धीमी-गर्तिं से खराब अक्षर र्लिंखे जावेंगे, प्रगर्तिं धीमी होगी, र्फिंर भी लगातार करना चार्हिंये । आर्हिंस्ता-आर्हिंस्ता सुधार होगा। हो सकता है र्किं उतना अच्छा कभी न हो पाये र्जिंतना मूल हाथ से था। र्फिंर भी फायदा है। मूल हाथ को आराम र्मिंलता है। अन्दर ही अन्दर उसका मोटर प्रोग्राम (साफ्टवेयर) सुधरता है। कुछ लोग सव्यसाची या उभय हस्थ होते हैं । महाभारत में अर्जुन दोनों हाथ से बखूबी गांडीव चलाता था। उन्हें अपनी खूबी का अहसास नहीं होता। जब बायें (या दूसरे) हाथ से काम शुरू करते हैं तो जल्दी सीख जाते हैं।
मोटा पेन कुछ मरीजों को रास आता है । बरू या दवात, र्निंप बोल्डर या वाटर कलर ब्रश से र्लिंखने के अभ्यास की सलाह कुछ र्विंशेषज्ञों द्वारा दी जाती है।
हाथ को सहारा देने के र्लिंये कुछ सरल यांर्त्रिंक साधनों का र्विंकास भी र्किंया गया है।
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13 टिप्पणियां:
बढ़िया, ज्ञानवर्धक आलेख. क्या कम्प्यूटर उपयोग के भी ऐसे ही खतरे हैं? माउस, ट्रैकपैड, कीबोर्ड इत्यादि के अत्यधिक प्रयोग से उत्पन्न?
अपूर्व जी,
हिन्दी चिट्ठाकारी में आपका अभिनन्दन है।
आप हिन्दी में 'न्यूरो ज्ञान' दे रहे हैं यह हिन्दी का सौभाग्य है। लेख बहुत ही उपयोगी है। आगे और भी उपयोगी लेखों की प्रतीक्षा रहेगी।
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आपके लेख की वर्तनियों को देखकर लगता है कि आप पहले किसी और फाण्त में लिखते हैं फिर उसको यूनिकोड में बदल रहे हैं। फाण्ट-परिवर्तक में कुछ कमियाँ हैं जिसके कारण पूर्णत: सही परिवर्तन नहीं हो पा रहा है।
इसके लिये मैं दो सुझाव देना चाहता हूँ-
१) आप कोई दूसरा फाण्ट परिवर्तक धिक शुद्ध) उपयोग में लें या आपके फाण्ट परिवर्तक को अधिक शुद्द बनाया जाय। जरा बताइये कि आप कौन सा फाण्ट परिवर्तक प्रयोग कर रहे हैं?
२) आप सीधे यूनिकोड में क्यों नहीं लिखते? आजकल दसों अच्छे तरीके हैं जिनसे यूनिकोद में सीधे लिखा जा सकता है।
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अन्त में लगे हाँथ आपसे यह भी निवेदन करना है कि स्वास्थ्य से सम्बन्धित महत्वपूर्न विषयों पर कुछ लेख हिन्दी विकि (www.hi.wikipedia.org) पर भी लिखें। हिन्दी विकि बहुत तेजी से प्रगति कर रही है। अभी उत्साही जनों ने हिन्दी दिवस तक वहाँ लेख संख्या पचास हजार तक ले जाने का निश्चय किया है। कृपया आप भी इस यज्ञ में आहुति दें।
Sir writer cramp ka ilaj nhi h kuch
Sir mujhe bhi writer cramp ki areshani hai mai aone purane tarike likh nahi pata hu dusre tarike se pen pakad Kar ache likh leta hu per hath mein Dard hota hi or pen pick karne me Bhari pan hota hai pls suggest kare Abhi me homeopathy liquid medicine le Raha hu yeh lakwa ka roop to nahi hi
इलाज सिर्फ दूसरे हाथ को काम में लेना है मै भी भक्तभोगी हूं गुड़गाव में वेदांता में डाक्टर बताते है
Don't very use other hand
सर बहुत परेशान हो गया हू पिछले कुछ दिनों से इस बीमारी से
Sir main bhi is bimari se jujh rha hu. Likhne me bahut dikkat hoti hai. Kya kare?
I am suffering from writer's cramp
Sir I am also suffer from writer's cramp disease, please tell me its cure.
Sir main bhi is bimari se jujh Raha hu Likhne me bahut dikkat hoti hai kya kare
R/Sir I have suffered from this disease. Some time it's feel that's my right hand.not feeling well.
Sir mai bhi kai saal se is bimaari se pidit hu koi sujhav dijiye 🙏
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