ऐलोपैथी दवाओं के विकास और मार्केटिंग की अनुमति प्राप्त करने के लिये ड्रग ट्रायल अनिवार्य है। नई औषधि पर ट्रायल करने के पूर्व ड्रग कन्ट्रोलर जनरल ऑफ इण्डिया की अनुमति औषधि कम्पनी द्वारा ली जाती है। ड्रग ट्रायल के बाद नई दवाईयों का सामान्य चिकित्सकीय उपयोग सम्भव हो पाता है।
भारत सरकार के ड्रग एण्ड कोस्मेटिक एक्ट १९४० तथा इण्डियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आई.सी.एम.आर.) के दिशा निर्देशों के अनुसार ड्रग ट्रायल संचालित किये जाते हैं । इन निर्देशों के अनुसार प्रत्येक संस्था में किसी ड्रग ट्रायल की अनुमति देने व उस पर निगरानी हेतु एक एथिकल कमेटी गठित की जाती है। एथिक्स कमेटी में विशेषज्ञ चिकित्सकों के अलावा समाज के अन्य वर्गों के प्रतिष्ठित नॉन मेडिकल प्रतिनिधि जैसे न्यायपालिका के पूर्व सदस्य, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल होते हैं। शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय इन्दौर में उक्त समिति गठित है, जिसके सदस्यों में माननीय उध न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, पद्मश्री उपाधि प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता, एक अधिवक्ता तथा एक वरिष्ठ पत्रकार भी शामिल हैं । वर्ष २००९ से ड्रग ट्रायल प्रारंभ करने के पूर्व क्लीनिकल ड्रग ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इण्डिया में पंजीयन कराना अनिवार्य किया गया है। शासकीय चिकित्सा महाविद्यालयों से संबंधित अस्पतालों में संचालित समस्त ड्रग ट्रायल्स में आई.सी.एम.आर. द्वारा दिये गये दिशानिर्देशों का पूर्णतः पालन किया जा रहा है।
ड्रग ट्रायल के संचालन हेतु प्रायोजित औषधि कम्पनी अन्वेषणकर्ता चिकित्सक तथा कुछ मामलों में संस्था के प्रमुख (अधिष्ठाता) के माध्यम से अनुबंध होता है, जिसकी जानकारी एथिक्स कमेटी के सदस्यों को दी जाती है । गोपनीयता अनुबंध के अनुसार उक्त जानकारी नियामक संस्थाओं के पदाधिकारियों के अलावा किसी अन्य को दिये जाने की अनुमति नहीं है। ट्रायल में भाग लेने में समस्त मरीजों को हिन्दी में विस्तारपूर्वक सहमति व्यक्त करने के बाद ही हस्ताक्षर करवाये जाते हैं। ट्रायल में भाग लेने से होने वाले सम्भावित दुष्परिणामों के बारे में भी मरीज को बताया जाता है।
मरीज पर किसी प्रकार का दुष्प्रभाव होने पर पूर्ण उपचार की व्यवस्था बीमा कम्पनी द्वारा की जाती है। मरीज या उसके परिजनों को स्वतंत्रता होती है कि वे जब भी चाहें ट्रायल में से अपने आपको बाहर कर सकते हैं। अनेक औषधियाँ विदेशों में पहले से ही जांची परखी होती हैं। परन्तु भारत सरकार के एफ.डी.ए. की अनुशंसकों के अनुसार भारत में मार्केटिंग हेतु भारतीय मरीजों में ट्रायल करके उक्त औषधि की उपयोगिता सिद्ध करना अनिवार्य कर दिया गया है।
ड्रग ट्रायल के संचालन हेतु प्रायोजक ड्रग कम्पनी द्वारा अध्ययनकर्ता चिकित्सक को एक बजट आवंटित किया गया है, जो मरीजों की संख्या, उनके द्वारा होने वाली विजिट तथा अन्य खर्चों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। इस बजट का अधिकांश भाग ट्रायल के संचालन में खर्च हो जाता है। यदि कुछ राशि बच जाती है तो वह अध्ययकर्ता चिकित्सक की वैधानिक आय होती है।
शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय इन्दौर की कॉलेज काउन्सिल की बैठक दिनांक १ अप्रैल २००८ के निर्णयानुसार कुल प्राप्त बजट का १० अध्ययकर्ता चिकित्सकों द्वारा विभागीय फण्ड में जमा करवाया गया है, जो विभागाध्यक्ष तथा अन्य फैकल्टी की सहमति से विभाग के उन्नयन में खर्च होता है। इसके अतिरिक्त ट्रायल बजट से विभाग की अघोसंरचना के विकास में मदद भी मिलती है। ट्रायल के माध्यम से स्नातकोत्तर छात्रों को शोध की अनेक विधाओं का प्रशिक्षण प्राप्त होता है।
डब्ल्यू. एच.ओ. द्वारा प्रायोजित पोलियो वैक्सीन ट्रायल का संचालन शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय इन्दौर में किया गया था, जिसके सफल परिणामों के फलस्वरूप देश से पोलियो के अन्मूलन में मदद मिल रही है। स्वाइन फ्लू वैक्सीन के सस्ते टीकों का सफल ट्रायल भी शासकीय मेडिकल कॉलेज इन्दौर में किया गया तथा इसके फलस्वरूप सस्ती वैक्सीन की उपलब्धता आम जनता के लिये बढ गई है।
अतः यह सत्य नहीं है कि मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में चिकित्सकों द्वारा इस प्रकार मरीजों से खिलवाड किया जाना गम्भीर चिन्ता का विषय है।
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