आज हम अपने देश का ६४वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। लेकिन भारत की उम्र ६४ वर्ष नहीं है। यह तो सनातन राष्ट्र है। राष्ट्र-राज्य की अवधारणा शायद यूरोप में २००-३०० साल पहले पनपी। भारत ३००० साल से एक अटूट पहचान के रूप में स्थापित है। महते जानराज्याय - प्राचीन ऋषियों का यह राष्ट्र के प्रति अभिनन्दन है। वसुधैव कुटुम्बकम हमारे मनीषियों की भावना रही। सर्वे सन्तु सुखिनः का उद्घोष हमारे विचारकों का सूत्र वाक्य रहा। सबै भूमि गोपाल की वाली उदारता सदैव Gingoinsm and parochialism :” Fantic nationalism and narrow point of view के खिलाफ बफर बन कर खडी रही।
सिंधु, गंगा, जमुना, नर्मदा, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा आदि का मंत्रों में आव्हान करके हम उसे अपने जल में समाहित होने को आमंत्रित करते थे, सूदूर केरल के नम्बूद्री पुजारी धुर उत्तर में बद्रीनारायण की पूजा करते थे। भारत एक संस्कृति जीवी देश रहा है - वही उसकी पहचान रही है, राजनैतिक परिभाषा जरूर अंग्रेजों ने दी हो और फिर १९४७ में उसे खण्डित भी करा परन्तु राष्ट्रीय जनचेतना तो अर्वाचीन है।
प्रजातंत्र की परम्परा भी रही है। (गणतंत्र) उदायता या लिब्रलिज्म हमारा स्थाई भाव है। सत्य के प्रति दुराग्रह नहीं। केवल हमारा ईश्वर, हमारा गॉड, हमारा अल्लाह ही सच्चा है, ऐसी जिद कभी नहीं। नास्तिकों को भी अपना मन प्रतिपादित करने की स्वतंत्रता थी। ब्लास्फेमी या ईशनिंदा जैसे कानूनों की हमें कभी जरूरत नहीं पडी। अनेकान्त वाद या स्यादवाद में भरोसा रहा। सत्य के अनेक चेहरे हैं। उस तक पहुंचने के अनेक पथ हैं। तुम्हें तुम्हारा पथ मुबारक हो, मुझे मेरा। इसीलिये तो अल्लामा इकबाल (जिन्होंने सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा लिखा था) को कहना पडा - कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ।
तरह तरह की बुरी भविष्य वाणियाँ की जाती रही हैं। तरह-तरह की निंदा। I may paraphrase some lines from Mark Twain :- the rumous about my death are premature and greatly exaggerated. इसी प्रकार - The prophecies about disintegration and collapse of India have always been and will always be falsefied.
लोग प्रायः अमेरिका को मेल्टिंग पॉट कहते हैं - जो काफी हद तक सही है। लेकिन भूल जाते हैं कि भारत जो cradle of civilization रहा - सभ्यताओं का पालना रहा - सबसे पुराने मेल्टिंग पॉट में से एक था। आज से ६०,००० वर्ष पूर्व जब होमो सेपियन्स ने पूर्व अफ्रीका से आस्ट्रेलिया, मध्यपूर्व, मध्य एशिया तक अनेक आव्रजन - Immigration कये। भारत भूमि अनेक जत्थों का मिलन केंद्र रही। मेल्टिंग पॉट में तपना पडता है - पिघलना पडता है, पहचान खोनी पडती है। हमारे यहाँ दूध में शर घुलने जैसा हुआ - याद करो पारसियों की व्यथा कथा और गुजरात आगमन या फिर यहूदी लोग केरल में । पारसियों को, मुगलों को, शकों को, हूणों को, पिघल कर अपनी पहचान नहीं खोना पडी, वे आत्मसात हुए, अपनी खूबियों के साथ । भारत में इस्लाम को भी उदार होना पडा।
प्रोफेसर आमर्त्य सेन ने - Book on Identity में कहा कि - हर व्यक्ति की अनेक पहचान होती है - Identity होती है। मेरी कितनी सारी पहचान है। मुझे गर्व है (भारतीय होने पर) हम सबको है।
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