शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

हिन्दी में विज्ञान पत्रकारिता 1.0 परिभाषाऐं 1.1 विज्ञान: विशिष्ट ज्ञान ज्ञान को प्राप्त करने, बढ़ाने, वृद्धि करने तथा पुष्टि करने की विशिष्ट विधियां, जिनकी शुरूआत किसी परिकल्पना या सिद्धान्त से हो सकती हैं और फिर प्रयोगों और अवलोकनों द्वारा निष्कर्ष निकाला जाता है। अनेक अवसरों पर अवलोकनों या डाटा से शुरूआत होती है और उसमें निहित पेटर्न्स द्वारा सिद्धान्त या परिकल्पनाओं का जन्म होता है। 1.2 पत्रकारिता: समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन या इन्टरनेट के लिये, सामयिक दृष्टि से तैयार किये गये, लिखे गये आलेख, समाचार, रिपोर्टस्, टिप्पणियां आदि। 1.3 विज्ञान पत्रकारिता और विज्ञान लेखन दोनों में थोड़ा भेद है तथा थोड़ी समानता भी है। 1.3.1 विज्ञान लेखन को दो श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा स्वयं वैज्ञानिकों के लिये लेखन जो उक्त विषय की शोध पत्रिकाओं ‘जर्नल्स’ में प्रकाशित होता है तथा जिसकी भाषा शैली गैर वैज्ञानिक या इतर वैज्ञानिक आम जनता के लिये दुरूह हो सकती है। शोध-लेख में प्रायः गैर वैज्ञानिक पत्रकार या लेखक द्वारा या फिर स्वयं वैज्ञानिक द्वारा रचा जाता है। 1.3.2 आम जनता के लिये विज्ञान लेखन जो किसी प्रयोगात्मक अध्ययन के परिणाम तथा उन पर आधारित बहस होती है। 1.4 सापेक्षता: विज्ञान पत्रकारिता और विज्ञान लेखन में सापेक्षता का भी भेद है। पत्रकारिता प्रायः समय (Topicality, Temporality) सापेक्ष, स्थान सापेक्ष (Locality) और व्यक्ति (Personality) सापेक्ष होती है जबकि गैर-पत्रकारिता लेखन इन प्रभावों में तुलनात्मक रूप से मुक्त होता है। 2.0 विज्ञान का महत्व किसी भी समाज, क्षेत्र, राज्य या राष्ट्र के लिये विज्ञान का महत्व असीम है। विज्ञान की शिक्षा, लोगों का वैज्ञानिक ज्ञान तथा आमजनों द्वारा वैज्ञानिक विधियों, प्रक्रियाओं और सोच या चिन्तन प्रणाली का आत्मसात किया जाना, किसी भी समुदाय की प्रगति, उन्नति और गुणवान बेहतन जीवन के लिये जरूरी है। मिथ्या विज्ञान और अंधविश्वासों से बहुत हानियां है। विज्ञान मनुष्य की तर्कवादी (Rationalist) प्रवृत्तियों को पोसता है तथा बौद्धिक स्तर को उंचा उठाता है। 2.1 मानविकी और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं। उनमें विरोधाभास नहीं है। दोनों की विधियां अलग है परन्तु अन्तिम उद्देश्य एक है - मनुष्य की स्थिति को बेहतर बनाना। दोनों धाराऐं मानव के सहज स्वभाव का हिस्सा हैं। अच्छी विज्ञान शिक्षा, बेहतर वैज्ञानिक ज्ञान और विज्ञान की विधियों को अपनी आदत बनाने वाला इन्सान और समाज, मानविकी के क्षेत्रों में भी बेहतर तरीके से योगदान देने की स्थिति में होता है। इसका विपरीत भी सत्य है। एक अच्छा वैज्ञानिक स्वयं को मानविकी के ज्ञान और अनुभूतियों से अछूता नहीं रख सकता। अर्थशास्त्र, नीति शास्त्र, साहित्य, कलाऐं, दर्शनशास्त्र, कानून, धर्म, राजनीति, समाजशास्त्र, प्रशासन आदि समस्त विषय विज्ञान की उपेक्षा नहीं कर सकते। 3.0 हिन्दी और भारतीय भाषाओं में विज्ञान लेखन और विज्ञान पत्रकारिता की स्थिति वर्तमान स्थिति दुःखद व निराशाजनक रूप से खराब है। मात्रा और गुणवत्ता दोनों का अभाव है। प्रदाता .लेखक व पत्रकार और गृहिता .पाठक, दर्शक दोनों का अभाव है। कलेवर (Content) की कमी है। भाषागत अघोसंरचना (Linguistic infrastructure) का विकास अवरूद्ध है। भारत में अंग्रेजी का अत्याधिक प्रभाव और महत्व इसका प्रमुख कारण है। अंग्रेजी भाषा से मेरा विरोध नहीं है। चाहे जो ऐतिहासिक कारण रहे हों, भारतीयों का अंग्रेजी ज्ञान एक लाभकारी गुण हो सकता है। मेरा विरोध अंग्रेजी माध्यम में स्कूली व महाविद्यालयीन शिक्षा से है, जिसकी वजह से नई पीढि़यां हिन्दी और भारतीय भाषाओं के वृहत शब्द संसार को खोती जा रही हैं । नई शब्द सम्पदा गढ़ने के अवसर खत्म हो रहे हैं। वैज्ञानिक विषयों की शब्दावली भी इस हानि का शिकार हो रही है। प्रश्न ‘कूप जल’ और ‘बहता नीर’ का नहीं है। हिंग्लिश की पिडगिन और क्रियोल रूपी खिचड़ी किसी का भला नहीं करती। न हिन्दी या अंग्रेजी भाषा का और न ही उन्हें उपयोग में लाने वाले व्यक्तियों का, जो न घर के रह जाते हैं, न घाट के। 3.1 मांग या प्रदाय में से कौन पहले ? अनेक सम्पादक व लेखक पत्रकार शिकायत करते हैं कि विज्ञान विषय पर मांग नहीं है। लोग कुछ और चीजें अधिक चाहते हैं । उन्हें चटपटा, मसालेदार माल चाहिये । राजनीति, क्रिकेट, बालीवुड, गपशप, अपराध आदि सारा स्थान और समय घेर लेते हैं। ऐसा सोेचना गलत है। लोगों में विज्ञान सम्बन्धी खबरों और विचारों को जानने की ललक है। उसे पोसने की जरूरत है। ठीक वैसे ही जैसे कि अच्छे फिल्मकार या निर्देशक और अभिनेता बेहतर कलात्मक फिल्में बनाकर, आमजनता को फूहड़ मसाला फिल्मों से परे विकल्प प्रदान करते हैं। वैसे ही पत्रकारों में से लगातार नई जमातें निकलना चाहिये जो ग्लेमर और पैसे से परे विज्ञान पत्रकारिता को अपनी विशेषज्ञता और पेशा बनाये। पत्रकारों को लीडर होना चाहिये- लोगों की वैज्ञानिक अभिरूचि और ज्ञान में श्रीवृद्धि करने वाले लीडर। विज्ञान पर वर्तमान कवरेज लगभग 3 प्रतिशत है जिसे 10 से 15 प्रतिशत तक होना चाहिये। 4.0 विज्ञान पत्रकारिता की उपयोगिता और स्वरूप सूचना देना। जानकारी देना। खबर देना। शिक्षित करना। ज्ञान बढ़ाना। किसी खबर या सूचना की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि बताना। किसी खोज या शोध प्रपत्र की कमियों और सीमाओं की विवेचना करना। मनोरंजन करना। पढ़ने में अच्छा लगना। मजा आना। अन्दर से खुश करना, आल्हादित करना। कभी-कभी दूसरे रसों की निवपत्ति भी हो सकती है जैसे कि भय, जुगुप्सा ‘वीभत्स’, आश्चर्य, करुणा, विषाद आदि। अन्ततः समस्त रस मन का रंजन ही करते है। बौद्धिक बहस में योगदान करना। दार्शनिक स्तर के प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने में मदद करना। नीति निर्धारण की प्रक्रिया में शरीक होना। 5.0 विज्ञान, विज्ञान के लिये या समाज के लिये ? यह ठीक वैसे ही है कि ‘कला कला के लिये या समाज के लिये ?’ क्या कला या विज्ञान सदैव सौद्देश्य ही होना चाहिये ? प्रायः दुहराए जाने वाले इस आव्हान का कितना महत्व कि विज्ञान को आम लोगों से तथा उनके देशकाल के सरोकारों से जुड़ना चाहिये ? बहुत सारी कलाएं और उससे कहीं अधिक विज्ञान, स्वयं के लिये होते हैं। उन्नीसवीं शताब्दी में रानी विक्टोरिया ने महान भौतिक शास्त्री माईकल फेराडे की एक विद्युतीय-मशीन को देख कर पूछा था ‘ इसका क्या उपयोग’ ? फेराडे ने कहा - ‘आपके पास में खड़ी इस महिला की गोद में लेटे इस शिशु की आज क्या उपयोगिता है ?’ बेसिक साईंसेस या आधारभूत विज्ञान की तात्कालिक व स्थानिक उपादेयता तथा प्रासंगिकता सदैव अगोचर व अनिश्चित रहेगी। विज्ञान में पूंजी, श्रम और समय का निवेश हमेशा एक बड़ा जुआ रहेगा। एक प्रकार का Venture capital Investment। परन्तु इतिहास गवाह है कि जिस राष्ट्र, राज्य या समाज ने विज्ञान में निवेश किया उसने सदैव प्रगति करी और आगे रहा। विज्ञान शोध और विज्ञान लेखन की तुलना में विज्ञान पत्रकारिता पर समय और स्थान सापेक्षता का बोझ कहीं अधिक होता है। 6.0 विज्ञान पत्रकारिता के कर्ता या प्रदाता 6.1 पत्रकार जिन्हें विज्ञान में रूचि और योग्यता है, की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है। यह श्रम साध्य है। बहुत पढ़ना पड़ता है। वैज्ञानिकों से मिलकर बातचीत करनी होती है, साक्षात्कार लेने होते हैं। यह खोजी पत्रकारिता है। अपनी अपनी विशेषज्ञता का क्षेत्र चुन कर उसका विकास करना होता है। हरफन मौला होना अच्छा है, परन्तु उसकी सीमाऐं है। स्कूल-कालेज में यदि विज्ञान शिक्षा की पृष्ठि भूमि रही हो तो बेहतर होता है। गैर वैज्ञानिक पत्रकार जब कोई अच्छी स्टोरी विकसित करते हें तो उसे पढ़कर, देखकर, उक्त विषय के वैज्ञानिक भी चकित रह जाते हैं। परन्तु अनेक बार गलतियां हो जाती हैं, जिन्हें टालने के लिये पत्रकार को चाहिये कि आलेख को छपने के लिये भेजने के पूर्व किसी मित्र-वैज्ञानिक से जरूर पढ़वा लें। परन्तु अनेक बार समय नहीं रहता। पत्रकारों को टाइम-लाइन पर काम करना पड़ता है। 6.2 वैज्ञानिक स्वयं जिन्हें आम जनता की भाषा में लिखने बोलने में रूचि और योग्यता हो। ऐसे वैज्ञानिक बहुत कम हैं, पर हैं जरूर। उन्हें आगे आने की जरूरत है। अनेक हार्डकोर वैज्ञानिक, आम जनता के लिये लिखने के काम को तौहीन की नजर से देखते हैं। यह गलत है। एक अच्छा वैज्ञानिक अच्छा संदेश वाहक भी हो सकता है। एक पत्रकार का सोच वैज्ञानिक की तुलना में अधिक विहंगम या समग्र होगा जबकि वैज्ञानिक अपने स्वयं के विषय में निष्णात होने के कारण गहराई तक सोच पायेगा, समझ पायेगा। हालांकि वह इतर क्षेत्रों की व्यापक सोच से वंचित हो सकता है। 7.0 सूचना के स्रोत और प्रमाणिकता 7.1 प्राथमिक स्रोत। अंग्रेजी मुहावरा है ‘‘घोड़े के मुंह से’’। किसी वैज्ञानिक खोज के सन्दर्भ में उस शोध को करने वाला वैज्ञानिक या उनका दल प्राथमिक स्रोत कहलायेगा या फिर उनके द्वारा लिखित शोध पत्र। साईंटिफिक जर्नल्स में प्रकाशित किसी नये अध्ययन परा आधारित मौलिक लेख सबसे महत्वपूर्ण है और विश्वसनीय प्राथमिक स्रोत माने जाते हैं। अच्छे विज्ञान संवाददाता अनेक शोध पत्रिकाऐं नियमित रूप से पढ़ते हैं। प्रत्येक अंक में जरूरी नहीं है कि ‘‘खबर के लायक’’। कोई आलेख मिले। खूब पढ़ो, धैर्य रखो, पढ़ते रहो। तब कहीं कुछ मिलता है। उसकी स्टोरी और हेडलाईन बनाना एक दूसरी कला है। विज्ञान की किसी भी शाखा में कोई नई खोज या आविष्कार की सूचना सीधे-सीधे मीडिया में देने की मनाही है। शोध-आलेख साईंटिफिक जर्नल में प्रकाशित होने के बाद ही उससे सम्बन्धित समाचार मीडिया को जारी किया जा सकता है या पत्रकारवार्ता करी जा सकती है। यदि कोई वैज्ञानिक स्वयं प्रेस विज्ञप्ति देकर कोई दावा करे तो उसकी विश्वसनीयता नहीं मानी जा सकती, जब तक कि उस दावे की पुष्टि किसी शोध पत्रिका में न हुई हो। नया आलेख जिस विषय से सम्बन्धित हो उस क्षेत्र के दूसरे प्रतिष्ठित वरिष्ठ वैज्ञानिकों से भी साक्षात्कार द्वारा टिप्पणी प्राप्त करी जा सकती है ताकि नई खोज को सम्यक और समग्र सन्दर्भ और पृष्ठभूमि के साथ परखा जा सके। वैज्ञानिक संगठनों तथा शासकीय या अशासकीय संस्थानों द्वारा समय समय पर जारी करी जाने वाली रिपोर्ट्स व विज्ञप्तियां भी प्राथमिक स्रोत हैं। 7.2 द्वितीयक स्रोत - वैज्ञानिक व सामान्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाले निबन्ध, टिप्पणियों, संपादकीय, रिव्यू लेख आदि अनेक प्राथमिक स्रोतों को आधार बना कर लिखी जाती हैं। विज्ञान की पाठ्य पुस्तकें व उनके विभिन्न अध्याय भी द्वितीयक स्रोत के उदाहरण हैं । विज्ञान के शिक्षक जो स्वयं शोध नहीं करते, परन्तु पढ़ते-पढ़ाते रहते हैं भी द्वितीयक स्रोत के उदाहरण हैं। 7.3 तृतीयक स्रोत - गैर वैज्ञानिक स्रोत जैसे कि सामान्य पत्रकार, आम नागरिक, प्रशासनिक अधिकारी आदि भी कभी-कभी वैज्ञानिक जानकारी प्रदान कर सकते हैं। परन्तु उनकी विश्वसनीयता सबसे कम होती है। उनके अवलोकनों और विचारों का हवाला, गैर-विशेषज्ञ गवाह के रूप में दिया जा सकता है । किसी खास बीमारी से ग्रस्त मरीजों के अनुभवों को मरीज कथा ‘क्लीनिकल टेल’ के रूप में लिखना उपयोगी है। इन्टरनेट पर अनेक प्रकार के अप्रमाणिक तृतीयक स्रोतों की भरमार हो गई है जो आम जनता को भ्रमित कर सकते हैं। विज्ञान पत्रकारिता में काम करने वालों को कुछ कसौटियों का ज्ञान और अनुभव होना चाहिये। ऐसे स्रोतों से बचना चाहिये जिनकी शैक्षणिक और अकादमिक योग्यता संदिग्ध हो, जो पूर्व घोषित ऐजेन्डा या लक्ष्य के लिये काम कर रहे हों, जो दावा करते हों कि अनेक तथाकथित शक्तिशाली ताकतें उनके व उनके काम के खिलाफ षड़यंत्र रचती हैं। असली और सच्चे वैज्ञानिक किसी षड़यंत्र का शिकार होने का बहाना नहीं बनाते। विज्ञान सत्य है। सत्य छिपाये नहीं छिपता। 8.0 विज्ञान पत्रकारिता की भाषा का स्तर और शैली। भाषा सरल हो। परन्तु जरूरत से अधिक सरल नहीं। कुछ तो स्तर बना कर रखना पड़ेगा। कक्षा दसवीं से बारहवीं तक के छात्र कुछ प्रयत्न के साथ उक्त आलेख को पढ़ें, समझें और आनन्द लें, ऐसा स्तर उचित माना जाता है। हिन्दी और भारतीय भाषाओं में विज्ञान लेखन प्रायः अंग्रेजी स्रोतों से अनुवादित हो कर आता है। अनुवाद की अपनी सीमाऐं हैं। अच्छा विज्ञान पत्रकार तीन क्षेत्रों में महारथ धारण करने वाला होना चाहिये - 1. अंगे्रजी भाषा 2. हिन्दी भाषा. 3. विज्ञान का उक्त सम्बन्धित विषय जिस पर रिपोर्टिंग करना है। शब्दानुवाद कृत्रिम और दुरूह होता है। भाषा में प्रंाजलता और बहाव की कमी हो जाती है। पत्रकार को चाहिये कि एक से अधिक प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों के लेख ;अंग्रेजीद्ध मनोयोग से पढ़ें, उनके बारे में मन से सोचें, विचारें फिर कल्पना करें कि उस जानकारी को बोलचाल की सरल हिन्दी में कैसे कहा जायेगा। हिन्दी में पारिभाषिक शब्दालियां हैं परन्तु वे शब्द चलन में न होने से कभी-कभी अटपटे या कठिन प्रतीत होते हैं। ऐसे शब्दों का आरम्भिक उपयोग करते समय उनकी सरल परिभाषा और अंग्रेजी पर्यायवाची .रोमन व देवनागरी दोनेां लिपियों में देना ठीक रहता है। हिन्दी अंग्रेजी पर्यायवाची युग्मों का उलटपुलट कर उपयोग करना चाहिये ताकि हिन्दी शब्दों का चलन बढ़े । डिस्कवरी और नेश्नल जियोग्राफिक जैसे चेनल्स पर वैज्ञानिक डाक्यूमेन्टरीज का हिन्दी डबिंग एक अच्छा उदाहरण है। 9.0 विवादास्पद विषयों में सम्यकता और सन्तुलन पत्रकारिता के किसी भी क्षेत्र से अपेक्षा करी जाती है कि व्यक्तियों, संस्थानों या विचारों मे विरोध की स्थिति में सम्यकता, सन्तुलन और समग्रता बनाई रखी जावेगी। हमेशा फिफ्टी फिफ्टी होना जरूरी नहीं है परन्तु समस्त पक्षों को उचित महत्व मिलना चाहिये। उचित की परिभाषा और कसौटियाॅं स्वयं विवादित हो सकती हैं। उदाहरण के लिये धार्मिक कारणों से अमेरिका जैसे आधुनिक प्रतीत होने वाले देश में लगभग आधी आबादी डार्विन के जैव विकास इवाल्यूशन सिद्धांत के बजाय बाईबिल में वर्णित जिनेसिस की कथा पर विश्वास करती है। सारे बायोलाॅजिस्ट्स जीव वैज्ञानिक डार्विन के सिद्धांत को मानते हैं। इस प्रकार की बहस में सन्तुलन के नाम पर धार्मिक अन्धविश्वास को बराबर का महत्व नहीं दिया जा सकता। जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग के सन्दर्भ में अधिकांश वैज्ञानिक मानते हैं कि मनुष्य के कार्यकलापों के कारण कार्बनडाईआक्साईड जैसे ग्रीन हाउस गैस की मात्रा बढ़ने में वायुमंडल गर्म हो रहा है। कुछ वैज्ञानिक इस परिवर्तन के सम्भावित नुकसानों और उनसे निपटने के तौर-तरीकों को लेकर दूसरे विचार रखते हैं। अच्छी पत्रकारिता का तकाजा है कि उनकी बात भी सुनी जावे, बशर्ते वह तथ्यों और तर्कों पर आधारित हो न कि अन्धविश्वासों पर । 10.0 हिन्दी में विज्ञान पत्रकारिता की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाने के लिये कार्य-योजनाऐं मांग और पूर्ति दोनों पक्षों पर काम करने की जरूरत है। 10.1 मांग कैसे बढ़ाऐं ? मांग है पर छिपी हुई है। भूख है पर दबी हुई है। इच्छा है पर पल्लवित नहीं हुई है। सम्पादकों को गलत फहमी है कि क्या बिकता है और क्या नहीं । उन्हें पहल करना पड़ेगी। विज्ञान पत्रकारिता का कलेवर नियमित रूप से अधिक मात्रा में पेश करना पड़ेगा। स्वाद धीरे-धीरे विकसित होते हैं। रूचियां धीरे-धीरे जाग्रत होती है। शुरूआत करना पड़ेगी। हिम्मत करना पड़ेगी। थोड़ी सी जोखिम लेना होगी। पाठकों को भागीदारी के लिये आमंत्रित करिये। प्रतियोगिता और इनाम रखिये। पाठकों और श्रोताओं का सतत् सर्वेक्षण करवाते रहिये। फीडबेक .प्रतिपुष्टि कितनी पढ़ी गई, कितनी सराही गई। वैज्ञानिक खबरों को सनसनी खेज, रोचक, मसालेदार बनाना प्रायः मुश्किल होता है। जबरदस्ती करना गलत होता है । फिर भी उन रिपोर्ट्स की पृष्ठभूमि का महत्व होता है। उसक उल्लेख किया जा सकता है। भविष्य की संभावनाओं की चर्चा करी जा सकती है। 10.2 पूर्ति कैसे बढाऐं ? अनेक कोर्सेस उपलब्ध हैं परन्तु उनकी संख्या और गुणवत्ता पर बहुत काम करना है। विज्ञान पत्रकारिता के क्षेत्र की मूर्धन्य हस्तियों को इन संस्थानों से जोड़े जाने की जरूरत है। वैज्ञानिकों को इन कोर्सेस से आज तक अछूता रखा गया है। स्वयं मुझे आज तक मौका नहीं मिला जबकि मेरे जैसे अनेक वैज्ञानिक विजिटिंग टीचर्स के रूप में अपनी सेवाऐं देना चाहते हैं। श्रेष्ठ विज्ञान पत्रकारिता के लिये अधिक संख्या में, अधिक मूल्य और प्रतिष्ठा के पुरस्कारों की वार्षिक परम्परा विकसित करने की जरूरत है। क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर वार्षिक व अन्य कालिक सम्मेलन, वर्कशाप, प्रतियोगिता आदि का आयोजन हो, उनका प्रचार प्रसार हो तथा उनमें भागीदारी बढ़े।

1 टिप्पणी:

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