शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

टेंशन टाईप हेडेक

टेंशन टाईप हेडेक, सिर दर्द के प्रमुख कारणों मे ंसे एक है। माईग्रेन के बाद उसी का नम्बर आता है। दोनों व्याधियाँ बहुतायात से होती हैं, कुछ लक्षण मिलते हैं तथा अनेक मरीजों में दोनों प्रकार के सिरदर्द एक ही समय पर या अलग-अलग समय पर साथ-साथ हो सकते हैं।
तनाव सदृश सिरदर्द (टेंशन टाईप हेडेक) युवावस्था, अधेड उम्र व प्रौढावस्था में होता है। स्त्री-पुरूष अनुपात २ः१ है। बधों व बूढों में कम होता है। इसमें प्रायः सिर के दोनों ओर दर्द होता है जो आगे ललाट पर या बगल में कनपटी पर या ऊपर तानकी पर या पीछे गर्दन के पास हो सकता है। बहुत से मरीजों में पूरी खोपडी दुखती है। दर्द की तीव्रता कम या मध्यम दर्जे की होती है। दैनिक कामकाज जैसे-तैसे जारी रखा जा सकता है। दर्द की अवधि १५ मिनिट से लेकर ७२ घंटे तक हो सकती है। दर्द का प्रकार भारीपन, वजन, दबाव या खिंचाव जैसा होता है। दर्द के साथ कभी-कभी जी मितलाना हो सकता हैपरन्तु उल्टीयाँ नहीं होती। तेज शोरगुल व तेज रोशनी के प्रति असहनशीलता देखने को नहीं मिलती। इस प्रकार के सिरदर्द के दौरे बार-बार आते हैं। अपने आप आते हैं। कभी जल्दी और कभी देर से आते हैं। कभी कम अवधि के कभी अधिक अवधि का, कभी कम तीव्रता के तो कभी अधिक तीव्रता के। अनेक सप्ताह या महीने अच्छे निकल जाते हैं। फिर जल्दी-जल्दी आ सकते हैं। लगातार अनेक दिनों तक जारी रह सकते हैं। कुछ समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों होता है। कुछ मरीज अपने अनुभव से कभी-कभी सही अनुमान लगा लेते हैं कि फलां फलां कारण जिम्मेदार है जैसे - थकान, उदासी, मानसिक, तनाव, पढाई का बोझ, काम का बोझ, व्यस्तता, नींद पूरी न होना, पेट साफ न होना, पेट में तथाकथित गैस की अधिकता होना, माहवारी (मासिक धर्म) के दो-तीन दिन पूर्व या उसके दौरान टी.वी. या फिल्म देखना, यात्रा करना। लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता और सभी मरीजों में नहीं होता।
टेंशन टाईप हेडेक नाम क्यों रखा गया? शायद शुरू में सोचते थे कि खोपडी, सिर, गर्दन व चेहरे के आसपास की मांसपेशियों में तनाव अधिक होने से यह सिरदर्द होता है। एक आरम्भिक नाम था मसल कान्ट्रेक्शन हेडेक अर्थात्‌ मांसपेशियों का संकुचन या सिकुडना। कुछ मरीजों में इन मांसपेशियों को ऊंगली से दबाकर देखने पर मरीज को दर्द होता है। इलेक्ट्रोमायोग्राफी (ई.एम.जी.) नामक जांच से मांसपेशियों की विुत सक्रियता को मशीन पर मापा जा सकता है। टेंशन टाईप हेडेक वाले कुछ मरीजों में यह सक्रियता अधिक पाई गई। कुछ मरीजों में खोपडी की बाहरी मांसपेशियों में बोटॉक्स नामक औषधि के एकाधिक बिन्दुओं पर लघु इंजेक्शन देने से लाभ हुआ। बोटॉक्स मांसपेशियों (मसल्स) की सक्रियता कम कर उन्हें थोडा शिथिल बनाता है। ये कुछ सबूत थे, परन्तु पर्याप्त नहीं माने गये। बहुत से दूसरे मरीजों में भिन्न परिणाम मिले। दूसरे शोधकर्ताओं द्वारा इन परिणामों की पुष्टि नहीं हुई। तब अन्तर्राष्ट्रीय सिरदर्द संघ के दल ने मिलकर निर्णय लिया कि मसल कान्ट्रेक्शन या मसल टेंशन के बजाय सिर्फ टेंशन टाईप शब्दावली का उपयोग हो। इन सारे मरीजों के लक्षण मिलते जुलते हैं और ये मसल कान्ट्रेक्शन या टेंशन (संकुचन या तनाव) के समान प्रतीत होते हैं, हालांकि हम नहीं जानते कि वास्तव में मांसपेशियाँ सिकुडती है या नहीं इसलिये हम इन्हें टेंशन टाईप हेडेक कहेंगे। हिन्दी में आसान पर्यायवाची होगा- तनाव सदृश सिरदर्द- पाठकों से अन्य विकल्प आमंत्रित हैं।
टेंशन टाईप हेडेक का नाम सुनते ही मरीज व घरवाले विरोध करते हैं - हमें कोई टेंशन नहीं है..., इसे भला क्या तनाव हो सकता है..., हमारे घर/परिवार में ऐसी कोई बात नहीं है..., मैं तो कोई टेंशन नहीं पालता, सदा मस्त व बिंदास रहता हूॅं... मैं कोई सायकोलाजिकल मरीज थोडे ही हूँ। डाक्टर साहब को समझ में कुछ आता नहीं, जबरदस्ती मुझे मानसिक रोगी घोषित कर रहे हैं, मुझे सच में बहुत दर्द होता है, मैं कल्पना नहीं करता, मैं सोचता नहीं हूँ।
मरीज व घरवाले अपनी जगह सही हैं। टेंशन टाईप हेडेक का मतलब मानसिक तनाव नहीं है। हम उन्हें समझाते हैं। टेंशन टाईप का इशारा खोपडी के बाहर स्थित मांसपेशियों व अन्य नाडियों या नसों के तनाव से हैं। यह तनाव अपने आप आता है। मरीज के सोचने से नहीं आता। हम नहीं जानते क्यों आता है? शायद मस्तिष्क के अन्दर से कुछ खराबी या संकेत आते हैं? वह आन्तरिक खराबी आती है, चली जाती है तथा फिर बार-बार आती है। इसके कारण भी नहीं मालूम । मानसिक तनाव यदा-कदा बढावा दे सकता है, परन्तु उसके साथ सिरदर्द का प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता। अच्छी भली स्थिति में, खुश मिजाजी में, शान्त मनोवस्था में भी सिरदर्द हो सकता है। खूब तनाव, परेशानी, चिंता, टेंशन हो, उन परिस्थितियों में भी कई बार ऐसा होता है कि सिरदर्द था ही नहीं ।
टेंशन टाईप हेडेक के कारण के रूप में आनुवंशिकता या जिनेटिक्स की भूमिका सीमित है। माईग्रेन में अधिक है कुछ स्त्रियों में माहवारी या मासिक धर्म के दिनों में सिरदर्द की आशंका अधिक होती है। पेट में होने वाली तथाकथित गैस से टेंशन टाईप हेडेक का कोई सम्बन्ध नहीं होता, हालांकि आम लोगों में गैस को लेकर नाना प्रकार की अवैज्ञानिक धारणाएं व्याप्त है।
बीमारी का निदान -
चिकित्सक अन्ततः फैसला कैसे करते हैं कि किसी मरीज को होने वाला सिरदर्द टेंशन टाईप है ? हिस्ट्री सुनकर। मरीज व घरवालों से बात करके। वे मरीज से कहते हैं - अपने सिरदर्द के बारे में बताओ। कुछ मरीज अच्छे से बताते हैं, विस्तार से बताते हैं, खुद होकर, बिना पूछे कहते जाते हैं, काम की बातें करते हैं। कुछ अन्य मरीज अटकते हैं, चुप रह जाते हैं, ठीक से कह नहीं पाते, विस्तार में नहीं जा पाते, कम महत्व की बेकार की जानकारी देने की दिशा में भटक जाते हैं। ऐसे मरीजों/परिजनों को पटरी पर लाना पडता है । उपरोक्त तालिका में दिये गये सिरदर्द के विभिन्न पहलुओं की ओर मरीज का ध्यान आकर्षित करने के लिये प्रत्यक्ष सवाल पूछने पडते हैं । जैसे कि सिर दर्द कब से है ? कब होता है ? कितनी देर होता है ? कितनी बार होता है ? कितनी जोर से होता है ? कौन से प्रकार का होता है ? क्या करने से होता है ? या बढ जाता है ? क्या करने से कम होता है ? तेज दर्द के साथ और क्या तकलीफें होती है ? जैसे कि क्या उल्टियाँ होती है ? जी मचलताता है ? शोरगुल व तेज रोशनी सहन नहीं होती है ? काम करने , चलने फिरने से बढता है क्या ?
टेंशन टाईप हेडेक है या नहीं इसका फैसला लगभग पूरी तरह हिस्ट्री सुनकर हो जाता है। मरीज के शरीर की जांच करने से इसमें विशेष मदद नहीं मिलती। फिर भी एक न्यूनतम संक्षिप्त जांच करी जाती है। मरीज के सिर, आंखों, नाक, मुंह, दांत, गर्दन तथा बाकि शरीर का मुआयना करते हैं, छूते हैं टटोलते हैं, ठोकते बजाते हैं, आला (स्टेथोस्कोप) लगाते हैं। दो-चार मिनिट में हो जाता है। टेंशन टाईप हेडेक से ग्रस्त मरीजों के शरीर की उपरोक्त जांच में कभी कोई खराबी नहीं पाई जाती। शरीर की जांच में ऐसा कोई चिन्ह नहीं होता जिसे देखकर, पाकर, डाक्टर कहे - चूंकि यह खराबी या चिन्ह दिख रहा है, अतः मरीज को टेंशन टाईप हेडेक है या हो सकता है।
इस रोग के निदान में प्रयोगशाला जांचों की भूमिका भी, शारीरिक परीक्षण की उपयोगिता के समान सीमित है। दोनों का मुख्य उपयोग केवल इतना ही है कि टेंशन टाईप हेडेक के अलावा कहीं कोई अन्य रोग तो नहीं है। क्योंकि वैसी स्थिति में कोई खराबी मिलने की संभावना बढ जाती है। खून, पेशाब की जांचें, एक्स-रे, सी.टी. स्कैन,एम.आर.आई आदि सभी की रिपोर्ट में लिखा मिलता है - सामान्य, नार्मल, काई खराबी नहीं पाई गई।
मरीज या घरवाले पूछते हैं जब शारीरिक या प्रयोगशाला जांच में कोई खराबी नहीं है तो सिर क्यों दुखता है या फिर इस तरह इतना ज्यादा सिर दुखता है फिर भी जांचों में बीमारी (या उसका कारण) पकड में क्यों नहीं आता ? हम कहते हैं - इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं । अनेक बीमारियों का कारण या खराबी अत्यन्त सूक्ष्म होती है, केवल रासायनिक या आण्विक स्तर पर होती है कि जांच की वर्तमान विधियों में नजर नहीं आती। इसक अर्थ यह नहीं कि रोग नहीं है। बीमारी तो है। मरीज होने वाली तकलीफ झूठमूठ की या काल्पनिक नहीं है, वास्तविक है।
उपचार - दर्द को बढावा देते कारणों से बचने की कोशिश करें। नींद नियमित समय पर व पूरे अवधि की लें। भोजन नियमित समय पर करें। जागरण व उपवास से बचें। कब्जियत से दूर रहने के लिये पानी अधिक पीयें, हरी सब्जियाँ व फल दोनों समय लें, पैदल घूमें। दर्द मिटाने वाली गोलियाँ खाने की आदत न डालें। एक बार आदत पड जावे तो छूटना मुश्किल होता है। तात्कालिक लाभ अच्छा लगता है परन्तु अगला सिरदर्द जल्दी-जल्दी तथा ज्यादा जोर से होने की आशंका बढ जाती है। बार-बार अधिक तीव्रता वाले दर्द से पीडित मरीजों में रोकथाम हेतु एमिट्रिप्टेलिन नामक गोली १० मि.ग्रा. या २५ मि.ग्रा. प्रति शाम, लगभग सात बजे, भोजन के पूर्व, लगातार दो -चार माह लेने से लाभ होता है।

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